CHITAI MANDIR ALMORA | चितई मंदिर अल्मोड़ा | CHITAI GOLU DEVTA TEMPLE ALMORA IN HINDI
CHITAI MANDIR ALMORA
उत्तराखंड जिसे देवभूमि कहा जाता है, जिसके कण-कण में देवता निवास करते है। यहाँ की पावन भूमि और प्रकृति प्रेम यहाँ की विशेषता है। आज का हमारा लेख उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित ऐसे ही एक पावन धाम एवं न्याय के दरबार CHITAI MANDIR ALMORA (चितई मंदिर अल्मोड़ा) पर है।
न्याय देवता गोलू उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में गोलू की प्रतिष्ठा न्याय के सर्वोच्च देवता के रूप में है। कुमाऊँ के लगभग प्रत्येक गांव में गोलू देवता के मन्दिर स्थापित हैं । चैती मंदिर के नाम से प्रसिद्ध चितई मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा शहर से 6 किमी दूर स्थित है।
यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक भगवान शिव के अवतार गोलू देवता को समर्पित है। ऐसी मान्यता है की इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। पहाड़ी पर बसा यह मंदिर चीड़ और मिमोसा के घने जंगलों से घिरा हुआ है। हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने के लिए आते है।
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इसके अतिरिक्त गोलू मन्दिर चम्पावत, गोलू देवता मन्दिर घोड़ाखाल नैनीताल श्रद्धालुओं की विशेष आस्था के केंद्र हैं जहाँ प्रतिवर्ष मनोकामना पूर्ति एवं न्याय की आस में भक्त बड़ी संख्या में दर्शन हेतु आते हैं।
CHITAI MANDIR ALMORA
न्याय के देवता गोलू देवता का इतिहास | GOLU DEVTA HISTORY IN HINDI
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार गोलू देवता चम्पावत के राजा हलराय के पुत्र थे। राजा हलराय की सात पत्नियाँ थी परन्तु वे संतान विहीन थे। पुत्र प्राप्ति हेतु ज्योतिषों की सलाह के अनुसार उन्होंने भैरव की उपासना की। उपासना से प्रसन्न होकर भैरव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया एवं कहा कि इसके लिए उन्हें आठवां विवाह करना होगा तथा वह स्वयं(भैरव) पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।
कालान्तर में एक दिन राजा शिकार खेलने गए जहाँ उन्होंने कलिंका को देखा। राजा ने कालिंका के पिता के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। कलिंका से विवाह के उपरांत अन्य रानियां कलिंका के प्रति द्धेष भाव रखने लगी। रानी द्वारा गर्भधारण के पश्चात प्रसव के समय सात रानियों ने कलिंका को मूर्छा का भय दिखाकर उनके आँखों में पट्टी बांध दी एवं नवजात पुत्र को बकरियों के कक्ष में फेंक दिया ताकि जानवरों की चोट से नवजात बालक की मृत्यु हो जाये।
कलिंका द्वारा संतान के विषय में पूछे जाने पर रानियों के उसके सम्मुख सिल बट्टा रख दिया तथा कहा कि उसने संतान को नहीं सिल बट्टे को जन्म दिया है। जब नवजात बालक जानवरों के कक्ष में भी सुरक्षित बच गया तो रानियों ने उसे सात ताले वाले बक्से में बन्द कर काली नदी में बहा दिया तथा राजा को भी सिल बट्टे वाली कहानी सुना दी। काली नदी में बहते हुए बक्से को गौरीघाट में भाना नाम के मछुवारे ने देखा तथा उसके अंदर बालक को देखकर उस निःसंतान मछुवारा दंपति की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा और वे उस बालक का लालन पालन करने लगे।
समय के साथ-साथ बालक बड़ा होने लगा तथा अलौकिक शक्तियां उसमें विकसित होने लगी। बालक गोरिल ने अपने पिता से घोड़े की मांग करी परंतु घोड़ा खरीदने में असमर्थ गरीब मछुवारे ने उसकी इच्छा पूरी करने के लिए काठ का घोड़ा ला दिया। चमत्कारी शक्तियो के कारण काठ घोड़े में जान डाल दी, इसी काठ के घोड़े को लेकर बालक एक दिन राजधानी धुमाकोट पहुंचा जहां एक जलाशय में सात रानियां स्नान कर रही थी।
बालक उसी जलाशय में अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाने लगा। रानियां उसका मजाक बनाने लगी की कहीं काठ का घोड़ा भी पानी पीता है। बालक ने कहा कि जब रानी कलिंका सिल बट्टे को जन्म दे सकती है तो फिर यह घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता। यह बात राजा तक भी पहुंची और सत्य जानने के बाद राजा ने सातो रानियों को फांसी की सजा सुनायी तथा अपना राज्य बालक को सौंप दिया। यह बालक बाल गोरिया (गौरी घाट में मिलने के कारण) एवं गौर भैरव (भैरव के समान शक्ति एवं गोरा रंग होने के कारण) नाम से विख्यात हुआ और एक न्यायप्रिय शासक के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। CHITAI MANDIR ALMORA
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चितई मंदिर अल्मोड़ा की विशेष मान्यता | CHITAI MANDIR ALMORA
चितई मंदिर अल्मोड़ा में उत्तराखंड ही नहीं भारत के अन्य क्षेत्रों से भी लोग अर्जियों के माध्यम से न्याय की गुहार गोलू देवता के दरबार चितई मंदिर अल्मोड़ा में लगाते हैं। मंदिर के बाहर हज़ारों की तादाद में लगे स्टांप,चिट्ठियाँ और आवेदन पत्र इसकी गवाही देते हैं। गोलू देवता के दरबार में अधिकतर कानूनी मुकदमे, न्याय, व्यवसाय, स्वास्थ्य, मानसिक परेशानी, नौकरी, गलत अभियोग, जमीन जायदाद व मकान निर्माण से जुड़े विषयों पर अर्जियां लगाई जाती हैं। मनौती पूर्ण होने लोग मंदिर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार घंटियां चढ़ाते हैं। CHITAI MANDIR ALMORA
आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग उनके इस न्याय को स्वीकार करता है। इस मंदिर में सारे साल कभी भी आकर पूजा की जा सकती है। गोलू देवता को दूधाधारी देवता भी कहा जाता है, लोग गाय के दूध से गोलू देवता को स्नान कराते है।
कैसे पहुंचे चितई मंदिर अल्मोड़ा :-
चितई मंदिर अल्मोड़ा के लिए सुगम यातायात हेतु सड़क मार्ग से जुड़ा है | जहां स्थानीय यातायात के साधन उपलब्ध रहते है |
अल्मोड़ा शहर से चितई मंदिर अल्मोड़ा की दूरी – 6 किमी
काठगोदाम रेलवे स्टेशन से दूरी – 96 किमी
पंतनगर हवाई अड्डे से दूरी – 120 किमी
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